Wednesday, 23 April 2014

मेरे मौला मेरे होंठो पे ये फरियाद रहे,

*imran partapgarhi*
मेरे मौला मेरे होंठो पे ये फरियाद रहे,
मेरी इस नस्ल को इशरत का लहू याद रहे !

इस सवालात को मत टाल भुगतना होगा,
ये समझ ले की बहरहाल भुगतना होगा !
चन्द पैसों के लिए वोट अगर बेंच दिया,
इसका अंजाम कई साल भुगतना होगा !!

मेरे ईमान की गैरत यूँ ही आबाद रहे......!
मेरी इस नस्ल को....................!

सर कटी लाश के उखड़े हुए बाजू की क़सम,
तुम्हे हैदर की क़सम है तुम्हे टीपू की क़सम !
जंग लडती हुयी ज़किया के बुढ़ापे की क़सम,
और बिलकीस के बहते हुए आंसू की क़सम !!

गर ये ख्वाहिश है की शायर का लब आज़ाद रहे ?
मेरी इस नस्ल को इशरत का लहू यद् रहे.....!!!

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